Hindi Kavita
28 जून 2020
जब चलना सीखा
फ़र्श पे हिन्दी के अक्षर बिखरे थे
पग पग चली
सम्भलने को उँगली
पकड़ी थी
माँ बोली पंजाबी की
ज़िन्दगी की पगडंडियों
पर अहसास हुआ
की कदमों ने जब
धरती पकड़ ली है
तो उंगली की पकड़
ढीली पड़ गई है
मैंने एक उंगली छोड़
हाथ ही थाम लिया
माँ का,
जिस में अब कलम है
और में लिख रही हूँ
पैरों की ज़मीन के बारे में
28 जून 2020
कभी राह चलने के लिए कोई हाथ
कभी उदासी के लिए 28 किसी का साथ
अपने आंसुओ को पोछने के लिए कोई हाथ
कभी जाम लगाने को किसी का साथ
दुखों के दल दल से निकलने को कोई हाथ
अपना हाले दिल सुनाने को किसी का साथ
कभी साथ चाहिए 28
कभी हाथ चाहिए
कियूं इतनी है मज़बूरी
ख़ुदा ने तुझको तराशा है
बडी मशक्क्त से
दो हाथ देने के पीछे कोई तो राज़ है
ज़िस्म दिया है तो रूह
(48)
Kvitaआखिरी प्यार 29,9,
2019
क्यूँ लोग हमेशा अपने पहले प्यार की बात करते है,
बात मैं बताना चाहूंगी अपने आख़िरी प्यार की,
जो अभी तक छुपा रहा, बात उस यार की,
पहला प्यार तो सिर्फ एक एट्रेक्शन था
उम्र के साथ मिट गया,जैसे बॉडी में हुआ रिऐक्शन था।
टीन ऐज में सड़कों पे फ़िल्मी हीरो ढूंढने लगी,
कुछ हकीकत हाथों से छूटने लगी।
सब हीरोइन मुझे अपने आप मे दीखने लगी।
शीशी के आगे नाच के, मैं अदाएं सीखने लगी।
कियोंकि मैं कपडों में मॉडर्न
चरित्र में सवित्री होना चाहती थी,
प्यार तो चाहती थी पर ना कुछ खोना चाहती थी।
इसीलिए ये आज़माइश चलती रही,
और मेरे प्यार की उम्र निकलती रही।
किसी का गुलाब याद है तो किसी की किताब याद है।
अगर कोई गर अच्छा लगा प्यार में ना वो सच्चा लगा।
साथी के रूप में पतिदेव आ गया,
करके पोछा बर्तन मैं सबकी जान बन गई।
किसी की बहू, किसी की बीबी, किसी की माँ बन गई।
आज भी आँखों में बाकी एक आशा है,
दिल के किसी कोने में नन्हीं सी अभिलाषा है,
आंखों पे मोटा चश्मा, बालों में चांदी है, हाथ में लाठी है, और कमर की टूटी काठी है
तो क्या हुआ
अब और ना मैं देर करूँगी
जल्द ही आखिरी प्यार को तुमसे शेयर करूँग
अज़नबी कोई मिला है
यूँ राह में
सोचता हूँ अब काफ़िला छोड़ दूँ
चलते हुए कदमों में जो
चुभे काँटा
उन पथरीली राहों का रुख़ मोड़ दूँ
बंदिश बने गर कोई तुझे पाने में
झूठे हर रस्मों रिवाज़ों को तोड़ दूँ
अपनी चाहत का कर दिया बयां मैंने
तू कहे हाँ, नाम अपना तेरे संग जोड़ दूँ।।
अजीत सतनाम कौर
दिसम्बर 2016
तेरे चरणों की धू तेरे ल
मेरी मिट्टी में मिल गई
ये मिट्टी सुन तेरे हरी रंग में खिल गई
अंत समय ये मिट्टी फिर मिट्टी में मिल जाएगी
परंतु मेरी मिट्टी कुछ विशेष कहलाएगी
तेरे कमलों की धूल मिश्रण में मिलेगी
तभी तो इस पे एक अदभुत कली खिलेगी
समय से वो पौधा बनेगी
फ़िर एक विशाल व्रक्ष बनेगी
इसकी शीतल छांव होगी
हर मुसाफिर की राहत थां होगी. .
सुनो ! उस दिन हमारी मात होगी"
अगर तुमसे कभी जो बात होगी
तो बातों में मेरी जज़्बात होगी ।
मेरी जिस दिन भी तुम से बात होगी
यक़ीनन आँखों से बरसात होगी ।।
अगर तुम रूठ कर जाओगे ऐसे
बसर मुझसे ना तब ये रात होगी ।
तुम्हारे बाद भी तँन्हा ना होंगे
तुम्हारी याद मेरे साथ होगी ।
हमें जिस दिन अलग होना पड़ेगा
सुनो ! उस दिन हमारी मात होगी ।
तुम्हारी सुर्ख आँखें कह रहीं है
महज़ कुछ देर में बरसात होगी ।
अजीत सतनाम कौर
जनवरी 2018 .
*************************
कौन जाने तेरी रज़ा क्या है ।
इस ज़माने से कब मिला क्या है
इसने आख़िर मुझे दिया क्या है।
मेरा मुझमें जो था वो बाँट दिया
मेरा मुझमें तो अब रहा क्या है।
जिसपे जीवन लुटा दिया अपना
वो ही बोला मुझे दिया क्या है।
वार दी तुझपे ज़िन्दगी अपनी
पूछते हो तुम्हीं वफ़ा क्या है।
छोड़ कर जा रहे हो तुम मुझको
असक, बताओ मेरी ख़ता क्या है।।
अजीत सतनाम कौर
जनवरी 2018
इक पल भी ना मिला सकूँन का मुझे
रात काँटो पे जैसे बसर हो गई
संग ज़िंदगी के मैं ऐसे चलती रही
मैं वहीँ रही वो किधर हो गई
ऐसे देखा तूने मुझे बिछड़ते हुए
जब भी याद आया आँख मेरी तर हो गई
मैंने चोरी चोरी प्यार किया था तुझे
ज़माने को कैसे फिर ख़बर हो गई
रात ढलती रही आस बुझती रही
'अस्क' इसी उलझन में फिर सहर हो गई।।
समेट तो लिए है मैंने लफ़्ज़ सारे
दिल में कहीं ज़ज़्बात अभी है बाक़ी
प्रेम की बारिश में भीगते हैं आशिक़
मेरे हिस्से की वो बरसात अभी है बाकी
रफ़्तार से हर रोज़ दौड़ रही है ज़िन्दगी
जो छूट गया उसका अहसास अभी है बाकी
उँगली पकड़ रेत पे लिखा था नाम
मिटाया लहरों ने पर छाप अभी है बाकी
आग़ोश तेरी में ना हो कभी सुबह मेरी
मेरे हिस्से की वो रात अभी है बाकी
चला तो गया तू अलविदा कह कर
यकीं है मुझे आख़िरी मुलाक़ात अभी है बाकी
लोग कहते है मिल गई मंज़िल मुझको
जानता है मेरा दिल तलाश अभी है बाकी
'अस्क' की तलाश अभी है बाकी।।
2015
जो अभी तक छुपा रहा, बात उस यार की,
पहला प्यार तो सिर्फ एक एट्रेक्शन था
उम्र के साथ मिट गया,जैसे बॉ
आख़िरी इश्क़
डी में हुआ रिऐक्शन था।
टीन ऐज में सड़कों पे फ़िल्मी हीरो ढूंढने लगी,
कुछ हकीकत हाथों से छूटने लगी।
सब हीरोइन मुझे अपने आप मे दीखने लगी।
शीशी के आगे नाच के, मैं अदाएं सीखने लगी।
कियोंकि मैं कपडों में मॉडर्न
चरित्र में सवित्री होना चाहती थी,
प्यार तो चाहती थी पर ना कुछ खोना चाहती थी।
इसीलिए ये आज़माइश चलती रही,
और मेरे प्यार की उम्र निकलती रही।
किसी का गुलाब याद है तो किसी की किताब याद है।
अगर कोई गर अच्छा लगा प्यार में ना वो सच्चा लगा।
साथी के रूप में पतिदेव आ गया,
करके पोछा बर्तन मैं सबकी जान बन गई।
किसी की बहू, किसी की बीबी, किसी की माँ बन गई।
आज भी आँखों में बाकी एक आशा है,
दिल के किसी कोने में नन्हीं सी अभिलाषा है,
आंखों पे मोटा चश्मा, बालों में चांदी है, हाथ में लाठी है, और कमर की टूटी काठी है
तो क्या हुआ
अब और ना मैं देर करूँगी
जल्द ही आखिरी प्यार को तुमसे शेयर करूँगी।
नवंबर 2019
अपने आप को
उड़ना चाहती थी मैं पँख फैला के
देखना चाहती थी आसमां को
इन्द्र धनुष के रंग सज़ा के
पर शीतल हवा से पहले ही
आँधी आ गई
तीख़ी नज़र एक बाज़ की
उस चिड़िया को खा गई
चिड़िया की हरजोई का
ना उसने कोई उत्तर दिया
हैवानित की चोंच से
उसके पँखो को कुत्तर दिया
अब मैं सहम गई हूँ
मैं डर गई हूँ
जीते जी मैं मर गई हूँ
अब मैं घोंसले से
कभी बाहर नहीं आती
कियूँ कि अब शीतल हवा नहीं गाती
अब ना रौशनी है
ना मौसम की गर्मी सर्दी है
सिर्फ़ पसरा है अँधेरा
और अंधेर गरधी है
ना रहे सुर
ना सजते अब साज़ है
चिड़ियाँ छुप गई घोंसलों में
बाहर उड़ते अब बाज़ है
सिर्फ़ बाज़ ही बाज़ है।।
पर तेरी आग़ोश में होती है मेरी संपूर्ति।।
रेगिस्तान को
एहसास ऐसा था
जैसे जमीं छू रही है
आसमान को
या
आसमां आया था उतर जमीं पे
ये कैसा था मिलन,
ये कैसा था मंजर।।
बंजर होती जमीं को
रेगिस्तान में बदलते देखा मैंने
बाहों में भर के आसमां
तूने जमीं को उठा लिया
या झुक कर मुझे पे ही कहीं
ख़ुद को मुझमें समा लिया
मेरी हया का ख़्याल भी था तुझे
उठा कोहरे की चादर
सबसे मुझे छुपा लिया
दोनों के आग़ोश से
फ़िर कैसी आँधी चली
टकराती गर्म हवा
तेज़ सांसो सी
वादियों में बही
सन सनहट सी फ़िज़ा में
फ़ैल गई हर सूं कहीं
बादलों की गर्जना से
मूसला धार जो बरसा हुई
फ़िर मौसम ने मिज़ाज़
कुछ ऐसा बदला
धरती के माथे पे
ओस की बूंदों सा पसीना उभरा।।
मगर मैं ले जाऊँगी कुछ राज़ साथ अपने।।
जैसे ख़्वाबों में देखता था
क़ातिलाना ये अदा
चाल भी हिरनी जैसी।।
ख़ुश हो कर कीजिये विदा
कहीं ना ये आख़िरी मुलाक़ात हो
मेरी चाहत मेरी हसरत है यही
तुझसे हर रोज़ यूँ ही बात हो।।
ज़्यादा जंचती नही मुझे
मुझे भी क्या प्यार हुआ जो मेरे ख़्वाबों में भी ना था।।
दूर जाना भी हो तो बता देना
बुझने लगी है जो आग
अब उसे ना कभी हवा देना
दांव पे लगा दिया ख़ुद को
बाकि क्या है जो तुझे देना।।
जनवरी 2018
अभी भी हरा है ज़ख्म मुझे दिखता है
छोड़ा तूने भी मगर बेगाना नहीं लगता है
हक़ीक़त नहीं बस अफ़साना सा ही लगता है
मौसम सावन का तेरे बग़ैर सुहाना नहीं लगता है
मैखानां भी मुझे अब मैखानां नहीं लगता है
ज़ख्म 'अस्क' को और दे ज़माना नहीं लगता है।।
सितंबर 2015
आज़ाद है सभी आज़ाद देश में
मेरी आज़ादी दरवाजों बंद ही होगी
बिन पूजे नारी, इबादत पाखण्ड ही होगी
दे दी उसे दहलीज़ ना लफ़्ज़ दिए उसको
क्या जीया,ज़िंदगी एक दण्ड ही होगी
आवाज़ उनकी बुलंद ही होगी
कब तक सहती तक चुप रहती
दबती रही ज़वाला तो प्रचण्ड ही होगी
प्रेम दौलत में उनकी हालत नंग ही होगी
रोज़ रंग बदलते देखे 'अस्क' आज के आशिक़
इतने चड़े रंग तो तस्वीर बदरंग ही होगी।।
मेरे हिस्से में अब बचा क्या है
वो ही बोला मुझे दिया क्या है
कौन जाने तेरी रज़ा क्या है
पूछते हो तुम्ही वफ़ा क्या है
तेरे कहने को अब बचा क्या है।।
जनवरी 2018
ये सजोंऐ हुए रिश्ते
आज फिर यूँ ही बैठ गई
छांटने
ढेर बहुत बड़ा था ,
उम्र के इस दौर में,
खाली समय भी
बहुत पड़ा था.....।
आज हर रिश्ता बहुत साफ था......।
किसे के पास हो कर भी दूर होने का अहसास था।
और किसी के दूर होने पर भी वो आस पास था।
..........
रिश्ते कुछ बहुत पुराने
और कुछ घिसे से ,
कुछ जैसे रिश्ते जर्जर से
वो रंग में भी अब बेरंग से,
माँ बाप के सम्बोधन से सजे जैसे
ये मिले थे रिश्ते मुझको जन्म से.....
कुछ ना पुराने, ना कुछ नए से
बीच की तह में पड़े से
अभी भी पूरी तरह नही हडेह से
रिश्ते थे कुछ सहेजे से,
बहन भाई के सम्बोधन से सजे जैसे
ये मिले थे रिश्ते मुझको बचपन से.......
ऊपर की तह में सजे थे रिश्ते कुछ नए से
खुशबू से लबालब भरे से
चमकदार और चटकीले रंगे से
ये रिश्ते ताज़े मोह के भरे से
प्यार से दिखते लदे से
मेरे बच्चों के संबोधन से सजे जैसे
ये मिले थे रिश्ते मुझको मेरे चयन से........
इस ढेर से मैंने सबसे पुराने नीचे दबे हुए रिश्ते को ही खींचा
ये वे रिश्ते थे जिसने
मेरा जीवन था सींचा
हंकाकि इस रिश्ते में वक़्त की करीज़ के निशान भी
दिख रहे थे
पर इसी के जर्जर से रंग मुझे खींच रहे थे
मैंने ढेर को पलट कर
नीचे दबे रिश्ते को निकाल
अपने सीने से लगा लिया
आँखों से गर्म जैसे कोई जलजला निकला
सच ही है
मेरी सफ़ेद लट ने....
पिता का दुनिया से विदाई,
माँ के बुढ़ापे की दर्द तन्हाई
पुराने पेड़ की जड़ से
मजबूत रिश्ते
कपड़ो के ढेर से ये बढ़ते रिश्ते
कुछ नए और कुछ पुराने से रिश्ते
उम्र के सफ़र में टूटते और बनतें रिश्ते
मेरी ज़िंदगी के सफ़र के ऐ सानी रिश्ते ।।
नवंबर 2019
हर आँसू वो मेरा है
चाहो शिद्दत से तो क़ायनात भी मिला देती है
ऐसा लिखा मैंने किताबों में पढ़ा है
किया था वादा तो लौट आऊँगा एक दिन
खो ना जाए तू भी
बस यही एक शुबा है
ज़िंदगी को तो जीत लूँगा यकीं है मुझकों
मौत की दस्तक़ से दिल थोड़ा डरा है
यकीं है तुझ पे मुहब्बतों की हदों तक
आख़िर वो मर्द है शक़ इसलिए ज़रा है
वादा किया था मैंने रात मिलने का
पकड़ के चाँद वो कई रातों से खड़ा है
हम दोनों जैसे दो किनारें हों दरिया के
इक किनारे से भला दूजा कब मिला है
वो और लोग थे जो इश्क़ पे परवान चढ़ गए
आज आशिक़ी में 'अस्क' कौन किस के लिए मरा है।।
अजीत सतनाम कौर
जुलाई 2015
मुझे कोई बुला रहा है
नज़रें ढूंढ रही हैं तुझको
नहीं मिलेगा तेरा प्यार मुझको
वक़्त कड़वी हक़ीक़त बता रहा है
फिर भी......
वहम है तू मुझे बुला रहा है
लौट आई हूँ फिर वहीँ पर
पुकारता है दिल तू कहाँ है
क्या मेरा खो गया है
कौन हँस के मुझे जता रहा है
फिर भी.....
वहम है तू मुझे बुला रहा है
जाने अब कैसे कट रही है ज़िंदगी
झुरमुट रिश्तों का घेर मुझे सता रहा है
फिर भी.....
वहम है तू मुझे बुला रहा है
नज़रों की नहीं होता एहसास
सच, सपने को झुठला रहा है
फिर भी.......
वहम है तू मुझे बुला रहा है।।
खड़ी थी ज़िंदगी
मैं कतरा गई
उधर जाने से।।
कुछ रितु के पँछी
उड़े जिस हाल से
कुछ पँख झरे उनके
कुछ पत्ते गिरे डाल से
बस यादें बना के उनको
मैंने अब तक रखा है
सम्भाल के।।
जब ज़िन्दगी की तस्वीर में
हुए रंग कुछ कम से
शरू मैंने पूरा उन्हें करना
फ़िर किया क़लम से।।
धूम पर मचलता था जो
वो गीत थी ज़िंदगी
वक़्त ने ली करवट
धीमी सी ग़ज़ल बन गई
रंगों से खेलने को जो
थामा था ब्रश मैंने
वो मेरे हाथ की
अब क़लम बन गई।।
कभी रंगों को बिखेर कर
केनवास को
मैं कर देती थी रंगीन
अब क़लम और काली है शाही
फ़िर ख्वाबो में रंग
भरती हूँ हसींन।।
कुछ सौदा किया
ज़िन्दगी ने
मुझसे इस क़दर
हर शै से मुझे नवाज़ा
दिल खोल कर
बस
बदले में मुझसे
मेरी मुस्कुराहट ले कर।।
अजीत सतनाम कौर
नवम्बर 2014
*************************
अब क्या बताऊँ हाय तौबा
नब्ज़ छू कर जान लेते हो
तुझसे क्या छुपाऊँ हाय तौबा
हर बार सुना वही गीत मुझसे
फिर वही सुनाऊँ हाय तौबा
जागे को जगाऊँ हाय तौबा
साये से समाये हो मुझमें
दूरी कैसे बनाऊँ हाय तौबा
हाले दिल क्या बताऊँ हाय तौबा।।
दर्द ओ ग़म के सिवा दिया क्या है
मेरे हिस्से में अब बचा क्या है
वो ही बोला मुझे दिया क्या है
कौन जाने तेरी रज़ा क्या है
पूछते हो तुम्ही वफ़ा क्या है
तेरे कहने को अब बचा क्या है।।
जनवरी 2018
जलाये ख़त मेरी यादों को किया दफ़न
मासूम नहीं हो मेरे क़ातिल तुम हो
राम कहें या अल्लाह,सबके साहिल तुम हो
तोड़े पूजा के घर,इंसानियत को कायम रखा
ख़ुदा तो नहीं हो पर पूजने के क़ाबिल तुम हो
तेरी गवाही से लगा उस भीड़ में शामिल तुम हो।।
फ़रवरी 2016
खिड़की खोल के रौशनी को
उड़ चल, तूने कहा
तेरे जहान अभी और भी हैं
तेरे हौसले से चलने लगी
ना ठहर, तूने कहा
तेरे मक़ाम अभी और भी है
ऊँची है उड़ान तेरी
फैला पँख, तूने कहा
तेरे आसमां अभी और भी है।।
फ़रवरी 2014
ये ऐब है मुहसिन
मैं जिस शक़्स को छू लू
वो मेरा नहीं रहता ।।
इतना सा ताल्लुक़ है
वो परेशान हो तो
मुझे नींद नहीं आती।।
तेरा मिलना ही
मुक्कदर में नहीं था ज़ालिम
वरना क्या कुछ नहीं खोया
तुझे पाने के लिए।।
वक़्त ही वफ़ा ना कर सका
जो लम्हें उसे ज़िन्दगी के दिए
ताह उम्र अफ़सोस है
ज़ख्म मेरे थे तो उसकी सुई से कियूं दिए।।
खाक में मिल गया है
तब से मेरा वजूद
जब से उसने मुझे
लफ्ज़ो से गिरा दिया
बेशक़ रोज चाँद से तोलता है
सुनता नहीं अब चाहें कान के पास बोलता है।।
मैंने वादा लिया था उससे
अपने जनाज़े पे बुलाने का
बस उसे निभाने को रोज़
उसके जिंदा होने की दुआ करती हूँ
उठा के हाथ अपने साथ
बस यही वफ़ा करती हूँ।।
बड़ी गज़ब सी फ़ितरत
पाई है मर्दों ने
वो ताकना चाहता है
औरत को लिबास के नीचे से
पर बेग़म अपनी के पर्दानशीं होने का
फ़र्क करता है।।
मेरी चुन्नरी में सुराख़ थे
तोहमतों के
सिर ढकने को उसका
किनारा ढूँढती हूँ
ख़ुद तो हूँ चलने में नक़ाब
उस पर
अपाहिजों से सहारा ढूंढ़ती हूँ।।
*****************************
मगर मैंने क़ीमत बड़ी दी है भारी
जो ईमारत उसने
पसीना बहा के है उसारी
कभी छीनना, कभी हक़ माँगना पड़ता
फ़ैला के आँचल कियूँ बनतीं है भिखारी
रोना रोए देश का,बड़ी है दुशवारी
परदेस में भी गाते गीत देश के
अपने देश में जीते, कियूँ ली ये जिंदगी उधारी
मौत के साथ ना चलनी ये
होशियारी
पैदल चला उम्र सारी, गरीबी को कोसता
चार कंधो की तुझे भी मिलेगी सवारी।।
फ़रवरी 2016
खुशियों की राह अब दिखाने वो आ गया
राह में मेरी कहकशां बिछाने वो आ गया
अश्क़ मेरी आँखों से चुराने वो आ गया
ख़ुशी के नगमें आज सुनाने वो आ गया
ये बोझ भी मेरे दिल से हटाने वो आ गया।।
2015
विदेश की चकाचौंध देखी उन्होंने
मगर मैंने क़ीमत बड़ी दी है भारी
जो ईमारत उसने
पसीना बहा के है उसारी
कभी छीनना, कभी हक़ माँगना पड़ता
फ़ैला के आँचल कियूँ बनतीं है भिखारी
रोना रोए देश का,बड़ी है दुशवारी
परदेस में भी गाते गीत देश के
अपने देश में जीते, कियूँ ली ये जिंदगी उधारी
मौत के साथ ना चलनी ये
होशियारी
पैदल चला उम्र सारी, गरीबी को कोसता
चार कंधो की तुझे भी मिलेगी सवारी।।
फ़रवरी 2016
उसके दर्द के कारण
अपने जख्मों को तो
मैंने कभी गिना ही नही।।
आँखे मेरी
लगता है कहीं कोई
बेटी रोई है।।
मुझसे शब्दों का प्यार माँगता है
ताकता है मासूमियत से
मगर इश्क़ तो इज़हार माँगता है।।
हर रोज़ सीखा है मैंने ज़िंदगी से
जोड़ देती हूँ कुछ सीखे पन्ने
ज़िंदगी की किताब से।।
गुल चमन में ए हसीं तुम सा अगर आबाद हो
ख़ुद गुलिस्तां और ख़ुद ही बागबां हो जाऊंगा।।
उम्र का सावन तो बेशक़ ही उतरने है लगा
ज़ुल्फ़ में तेरी हुआ तो फिर जवां हो जाऊंगा।।
अजीत सतनाम कौर
जनवरी 2018
नहीं किसी को आदत अब ज़ख्म छुपाने की
अब मुझे आदत हो गई है मुस्कुराने की
बन गई आदत अब दर्द खाने की
कैसी पड़ गईं रस्में रोज़ी कमाने की
कोई आस नहीं अब वापिस घर जाने की ।।
सितम्बर 2015
दिल की दुनिया को मेरे ऐसे बसा गया कोई
उसकी दुनिया में चुपके से आ गया कोई
बेख़ुदी में जलवा दिखा गया कोई
गीत ख़ुशी के सुना गया कोई
आँसुओ से अपने मिटा गया कोई
रोती हुई को हँसा गया कोई।।
2015
लक्ष्मण रेखा बना कर
मैंने उसे रोक दिया
दहलीज़ के उस पार
वो हाथ हिला के
चला गया परतेरी ख़ामोशी बयां करने
बेशक़ दूर तुझसे हूँ
पर तेरी चुप से वाकिफ़ हूँ।।
बस्ती के बसे होने का एहसास रहता है
सुकूँ दिल को वो पास रहता है
प्यासे दिलों को ये आस रहता है
यकीं हो तो करम ख़ुदा का ख़ास रहता है।।
जनवरी 2017
और कितनी बड़ी अब सज़ा दोगे तुम
जबकि मालूम है कि डूबा दोगे तुम
जीते जी अब क्या जला दोगे तुम
अब ज़माने में उनको हवा दोगे तुम
मुझ पे इल्ज़ाम कैसे लगा दोगे तुम।।
जनवरी 2017
उसका इंतज़ार।।
प्यार के पँख
खुल कर उड़ना चाहती थी
उसके प्यार की धार ने
मेरे पँख कुत्तर दिए।।
चलने से पहले
कौन मिलेगा ?
जो वफ़ा निभा जाए
वो राह अभी मिली नहीं
कि तू चले और वफ़ा पाए।।
मैं थक जाती हूँ
ज़िंदगी की डगर
और धुँधला जाती है
मेरी नज़र
तो कबरस्थान में
बैठ कर
मैं देखती हूँ अगला सफ़र।।
वो क्या समझेगा
वो ये भी नहीं जानता है
मैंने अन्दर की
गुड़िया का हाथ
अभी छोड़ा नहीं है
बिछड़ गए सभी बारी बारी
बचपन ने साथ
अभी तोड़ा नहीं है।।
जुलाई 2014
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जिस रास्ते पर
खड़ी थी ज़िंदगी
मैं कतरा गई
उधर जाने से।।
कुछ रितु के पँछी
उड़े जिस हाल से
कुछ पँख झरे उनके
कुछ पत्ते गिरे डाल से
बस यादें बना के उनको
मैंने अब तक रखा है
सम्भाल के।।
जब ज़िन्दगी की तस्वीर में
हुए रंग कुछ कम से
शरू मैंने पूरा उन्हें करना
फ़िर किया क़लम से।।
धूम पर मचलता था जो
वो गीत थी ज़िंदगी
वक़्त ने ली करवट
धीमी सी ग़ज़ल बन गई
रंगों से खेलने को जो
थामा था ब्रश मैंने
वो मेरे हाथ की
अब क़लम बन गई।।
कभी रंगों को बिखेर कर
केनवास को
मैं कर देती थी रंगीन
अब क़लम और काली है शाही
फ़िर ख्वाबो में रंग
भरती हूँ हसींन।।
कुछ सौदा किया
ज़िन्दगी ने
मुझसे इस क़दर
हर शै से मुझे नवाज़ा
दिल खोल कर
बस
बदले में मुझसे
मेरी मुस्कुराहट ले कर।।
अजीत सतनाम कौर
नवम्बर 2014
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कुछ उसे भी ज़िद
मुझी से थी
उसकी कोशिश थी
मुस्कुराहट छिनने की
मुझे भी अनख थी
उससे जीतने की
सफ़र पूरा हुआ दौड़ का
मैं बाज़ी मार लूंगी
हँस कर उसे
अलविदा कहूँगी।।
सका कोई
काश और किन्तु में
बटती रही ज़िंदगी
रेत की तरह
फिसलता रहा वक़्त
यूँ तो रफ़्तार से
कटती रही ज़िंदगी।।
सफ़र ज़िंदगी का
एक अहसास पनपता रहा
मुझमें हक़ीक़ती का
जो गुनाह किए थे
शायद किसी जन्म में
तभी मेरी रूह को
ये कारगाह मिला होगा
कौन लिख सकता है
लेख किसी के
ऐसा होना दरग़ाह से ही
मिला होगा।।
उम्र ज़िंदगी को
कैद की तरहा
और पूछती रही
हर किसी से कि
मेरा गुनाह क्या है।।
मुझे गिरा के चले तो सही
हरा के चले तो सही
आख़िर
मुस्कुरा के चले तो सही।।
अगस्त 2014
कुछ अधूरे से ख़्वाब लिखना है
बात वो भी जवाब लिखना है
अब मुझे बेहिसाब लिखना है
'अस्क' खार को भी गुलाब लिखना है।।
जनवरी 2018
मेरे होने से तुझको क्या मिला मुझको बताना
क्या तुझे भी ऐसा कुछ हुआ मुझको जताना
दिन रात तेरी आग़ोश में हूँ
शुरू कर मुझे तू सताना
अब तेरे नाम से पहिचनेगा मुझको ज़माना
सुगलता है तेरे सीने में, कियूँ मुझको कहा ना
अब बेरंग लगता है मुझको मैखानां।।
अक्टूबर 2018
हर किसी ने
जरूर मुझमें कुछ
खामियां होंगी
मैं ही नहीं बना था
किसी के लिए
नसीब में मेरे ही
तन्हाईयां होंगी।।
ज़िंदगी में ही
बसता है वो तो हर साँस में
मैं खोजती रही
बन्दगी में ही
मौज़ूद है वो क़ायनात में
मैंने ढूंढा सिर्फ
ज़मी में ही।।
इंतज़ार रखना
बेशक़ थे ज़िंदगी में
अमावस के अँधेरे
डाल के अश्कों का तेल
मैंने नैनो के दिये
जलाए रखे।।
ज़िंदगी की थकान से चूर
मैं सकून ढूँढती रही
आ तू यहीं
आरामगाह है ये मेरी
और आख़िरी नींद है मेरी
मुझे आख़िरी नींद सोना है
वादा था उससे मिलने का
इसी पते पे मुझे
दिलबर से रूबरू होना है।।
खड़ी थी ज़िंदगी
मैं कतरा गई उधर जाने से
मुरझा गई उसे जीने में
अब तो खिलूँगी
मौत के आने से।।
कहाँ नहीं है तू
सोचती हूँ
यहीं है वहाँ नहीं है तू
है कौन सी जगाह
जहाँ नहीं है तू
सच है या वहम
जहाँ मैं हूँ वहाँ नहीं है तू।।
आजीत सतनाम कौर
जिंदगी तुझपे किताब लिखना है
कुछ अधूरे से ख़्वाब लिखना है
बात वो भी जवाब लिखना है
अब मुझे बेहिसाब लिखना है
'अस्क' खार को भी गुलाब लिखना है।।
जनवरी 2018
दिल की दुनियां को मेरे बसा गया कोई
बेख़र था दिल मेरा जाने कैसे
उसकी दुनिया में चुपके से आ गया कोई
ये सोचा भी था ना ख़ाब में
बेख़ुदी में जलवा दिखा गया कोई
सुना रही थी मैं तो गमों के नग़मे
गीत खुशियों के सुना गया कोई
जो कुछ भी लिखा था दिल की तख़्ती पे
आँसुओ से अपने मिटा गया कोई।।
अक्टूबर 2015
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तेरी यादों के तवसूर में रहा करती है
तेरी बेटी तेरे दम से जीया करती है
ख़ुद काँपती रही सर्द हवाओं में वो
अपनी आग़ोश में बच्चे को लिया करती है
अपने सारे दुःखो को समेट झोली में
होंठ अपने सब्र से सिया करती है
अपने परिवार की छाया बन
सारे सुख उन पे वार दिया करती है
नहीं करते बदकिस्मत उसकी सेवा
कुदरत उन्हें कैसे बर्बाद किया करती है
है बेशक़ हजारों मील दूर मुझसे मगर
उसकी ममता मेरे अंदर जीया करती है
जब परदेस से उससे बात करूं
रो रो के मेरा नाम लिया करती है।।
मेरे दिल ने क्या कहा,
चाहा सभी को पर
क्यूँ ख़ुद को ना चाहा,
माँ में थी मेरी दुनिया
उसके पल्लू के संग रहना
मिलती थी मुझे ठंडी छांव
हर सुख दिया मेरे बाप ने
मेरा शहर या उनका गांव
सुखी थी मैं उसके राज में
उसकी ताक़त महसूस
करती थी अपने आप में
माँ ने टोका
हर वो काम करने को
जिसमें मेरी चंचलता थी
हर घड़ी अहसास कराया मेरे यौवन का,
मेरी बचपन को रंग दिया
अपने रंग में।
कुछ दर्द सा था मेरे अंदर में
कैसे घर बदला
कियूँ माँ का छूटा
रस्में निबाही सब ने
मुझसे कुछ ना पूछा
पति की चौखट थी
मैं थी अब इसके दर पे
नया सफ़र था
अपना घर था
मेरी हस्ती थी
अब औलाद के दम पे
जी तो ली मैंने
एक लम्बी ज़िंदगी थी
माँ के घर से
माँ बनने तक
मैं ख़ुद के लिए
कब जी थी।।
अजीत सतनाम कौर
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दूँ नाम क्या इसको
सोते कहीं
हर सुबह वो बंसरी बजाता है
बाज़ी हार के अपनी
अपनी आँखों के दीये वो जलाता है
'अस्क' के हिस्से के आँसू बैठ वो बहाता है।।
2015
मैं जो जिन्दा हूँ
फ़क़त तेरे लिए
मेरी हर सांस जो तेरा है
हो महल,झोपड़ी या कुटिया
तू जहाँ है वहीँ मेरा बसेरा है
ज़िंदगी की कडी धूप में साया तेरा
ये पेड़ किस क़दर घनेरा है
कियूँ ना जतलाऊँ
तुम पे हक़ अपना
तू मेरा है सिर्फ मेरा है।।
2015
सोए जज्बातों का कैसा बहाव आया
यूँ तो ख़तरे के निशान को निगल गया उम्र का पानी
जिंदगी की दौड़ में,ना मुझे ये ख्याल आया।।
कुछ नगद तो, कुछ कर्ज़ में थी जिंदगी
अनचाहे से फ़र्ज़ में थी जिंदगी
हर पल जीओ यारों
यही बात तुम्हें बताना चाहता हूँ
चलाओ जादू की छड़ी
मैं गुजरे दौर में
लौट जाना चाहता हूँ।।
उम्र
खामोश रास्तों में भी हलचल मचाए रखना
जूड़े में महबूब के फूल सजाए रखना
गले से लिपटे रहेंगें रिश्ते सारे
दोस्तो से पर हाथ मिलाये रखना
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अंदाज़े सुख़न अपना जुदा मांगा है
करूँ मुहब्बत मैं तेरे नेक बन्दों से
फ़क़त एक यही शौंक सदा मांगा है
ना मोहताज़ 'अस्क' कभी दुनिया में हो
उठा हाथ तो दुआ यही मांगा है।।
अगस्त 2015
शबे तन्हाई में आँसू बहाए है
गुज़रे थे जो दिन साथ तेरे
तेरी यादों से सजाए है
गमें जुदाई ने स्याह किया दिल को
तेरी याद में दीये जलाए है
तेरे वादे तेरी बातें तेरी याद
सब सीने में छुपाए है
जब भी चाहा तेरा जिक्र करना
बहाने से 'अस्क' ने गीत गाए है।।
यूँ राह में
सोचता हूँ अब काफ़िला छोड़ दूँ
चलते हुए कदमों में जो
चुभे काँटा
उन पथरीली राहों का रुख़ मोड़ दूँ
बंदिश बने गर कोई तुझे पाने में
झूठे हर रस्मों रिवाज़ों को तोड़ दूँ
अपनी चाहत का कर दिया बयां मैंने
तू कहे हाँ, नाम अपना तेरे संग जोड़ दूँ।।
दिसम्बर 2016