Hindi Kavita








***********************************
                          (50)

 28 जून 2020

जब चलना सीखा

फ़र्श पे हिन्दी के अक्षर बिखरे थे

पग पग चली 

सम्भलने को उँगली

पकड़ी थी

माँ बोली पंजाबी की

ज़िन्दगी की पगडंडियों

पर अहसास हुआ

की कदमों ने जब

धरती पकड़ ली है

तो उंगली की पकड़

ढीली पड़ गई है

मैंने एक उंगली छोड़

हाथ ही थाम लिया

माँ का,

जिस में अब कलम है

और में लिख रही हूँ

पैरों की ज़मीन के बारे में



*************************************

                         (49)

28 जून 2020

कभी राह चलने के लिए कोई हाथ

कभी उदासी के लिए 28 किसी का साथ

अपने आंसुओ को पोछने के लिए कोई हाथ

कभी जाम लगाने को किसी का साथ

दुखों के दल दल से निकलने को कोई हाथ

अपना हाले दिल सुनाने को किसी का साथ

कभी साथ चाहिए 28

कभी हाथ चाहिए

कियूं इतनी है मज़बूरी

ख़ुदा ने तुझको तराशा है

बडी मशक्क्त से

दो हाथ देने के पीछे कोई तो राज़ है

ज़िस्म दिया है तो रूह 




**********************************

                  (48)

 Kvitaआखिरी प्यार 29,9,

2019


क्यूँ लोग हमेशा अपने पहले प्यार की बात करते है,

बात मैं बताना चाहूंगी अपने आख़िरी प्यार की,

जो अभी तक छुपा रहा, बात उस यार की,

पहला प्यार तो सिर्फ एक एट्रेक्शन था 

उम्र के साथ मिट गया,जैसे बॉडी में हुआ रिऐक्शन था।

टीन ऐज में सड़कों पे फ़िल्मी हीरो ढूंढने लगी,

कुछ हकीकत हाथों से छूटने लगी।


सब हीरोइन मुझे अपने आप मे दीखने लगी।

शीशी के आगे नाच के, मैं अदाएं सीखने लगी।

कियोंकि मैं कपडों में मॉडर्न

चरित्र में सवित्री होना चाहती थी,

प्यार तो चाहती थी पर ना कुछ खोना चाहती थी।

इसीलिए ये आज़माइश चलती रही, 

और मेरे प्यार की उम्र निकलती रही।

किसी का गुलाब याद है तो किसी की किताब याद है।

अगर कोई गर अच्छा लगा  प्यार में ना वो सच्चा लगा।

साथी के रूप में पतिदेव आ गया,

करके पोछा बर्तन मैं सबकी जान बन गई।

किसी की बहू, किसी की बीबी, किसी की माँ बन गई।

आज भी आँखों में बाकी एक आशा है,

दिल के किसी कोने में नन्हीं सी अभिलाषा है, 

आंखों पे मोटा चश्मा, बालों में चांदी है, हाथ में लाठी है, और कमर की टूटी काठी है

तो क्या हुआ

अब और ना मैं देर करूँगी

जल्द ही आखिरी प्यार को तुमसे शेयर करूँग




********************************

                          (46)


अज़नबी कोई मिला है

यूँ राह में

सोचता हूँ अब काफ़िला छोड़ दूँ

चलते हुए कदमों में जो 

चुभे काँटा

उन पथरीली राहों का रुख़ मोड़ दूँ

बंदिश बने गर कोई तुझे पाने में

झूठे हर रस्मों रिवाज़ों को तोड़ दूँ

अपनी चाहत का कर दिया बयां मैंने

तू कहे हाँ, नाम अपना तेरे संग जोड़ दूँ।।


अजीत सतनाम कौर

दिसम्बर 2016




********************************

                       (45)

तेरे चरणों की धू तेरे ल

मेरी मिट्टी में मिल गई

ये मिट्टी सुन तेरे हरी रंग में खिल गई

अंत समय ये मिट्टी फिर मिट्टी में मिल जाएगी

परंतु मेरी मिट्टी कुछ विशेष कहलाएगी

तेरे कमलों की धूल मिश्रण में मिलेगी

तभी तो इस पे एक अदभुत कली खिलेगी

समय से वो पौधा बनेगी

फ़िर एक विशाल व्रक्ष बनेगी

इसकी शीतल छांव होगी

हर मुसाफिर की राहत थां होगी. .





***********************
                    (44)


हमें जिस दिन अलग होना पड़ेगा
सुनो ! उस दिन हमारी मात होगी"


अगर तुमसे कभी जो बात होगी
तो बातों में मेरी जज़्बात होगी ।

मेरी जिस दिन भी तुम से बात होगी
यक़ीनन आँखों से बरसात होगी ।।

अगर तुम रूठ कर जाओगे ऐसे
बसर मुझसे ना तब ये रात होगी ।

तुम्हारे बाद भी तँन्हा ना होंगे
तुम्हारी याद मेरे साथ होगी ।

हमें जिस दिन अलग होना पड़ेगा
सुनो ! उस दिन हमारी मात होगी ।

तुम्हारी सुर्ख आँखें कह रहीं है
महज़ कुछ देर में बरसात होगी ।

अजीत सतनाम कौर
 जनवरी 2018 .


 *************************
                        (43)

kब किसे क्या बना दे तू मौला
कौन जाने तेरी रज़ा क्या है ।

इस ज़माने से कब मिला क्या है
इसने आख़िर मुझे दिया क्या है।

मेरा मुझमें जो था वो बाँट दिया
मेरा मुझमें तो अब रहा क्या है।

जिसपे जीवन लुटा दिया अपना
वो ही बोला मुझे दिया क्या है।

वार दी तुझपे ज़िन्दगी अपनी
पूछते हो तुम्हीं वफ़ा क्या है।

छोड़ कर जा रहे हो तुम मुझको
असक, बताओ मेरी ख़ता क्या है।।

अजीत सतनाम कौर
जनवरी 2018

***************************
                     (42)         

ज़िंदगी मेरी जैसे भी बसर हो गई
आँख लगी भी ना थी कि सहर हो गई                  


इक पल भी ना मिला सकूँन का मुझे
रात काँटो पे जैसे बसर हो गई

संग ज़िंदगी के मैं ऐसे चलती रही
मैं वहीँ रही वो किधर हो गई

ऐसे देखा तूने मुझे बिछड़ते हुए
जब भी याद आया आँख मेरी तर हो गई

मैंने चोरी चोरी प्यार किया था तुझे
ज़माने को कैसे फिर ख़बर हो गई

रात ढलती रही आस बुझती रही
'अस्क' इसी उलझन में फिर सहर हो गई।।


अजीत सतनाम कौर
सितंबर  2015


****************************
                         (41)

यूँ कहने को तो नहीं जुस्तजू रही कोई
बैठी हूँ बीच दरिया प्यास अभी है बाकी

समेट तो लिए है मैंने लफ़्ज़ सारे
दिल में कहीं ज़ज़्बात अभी है बाक़ी

प्रेम की बारिश में भीगते हैं आशिक़
मेरे हिस्से की वो बरसात अभी है बाकी

रफ़्तार से हर रोज़ दौड़ रही है ज़िन्दगी
जो छूट गया उसका अहसास अभी है बाकी

उँगली पकड़ रेत पे लिखा था नाम
मिटाया लहरों ने पर छाप अभी है बाकी

आग़ोश तेरी में ना हो कभी सुबह मेरी
मेरे हिस्से की वो रात अभी है बाकी

चला तो गया तू अलविदा कह कर
यकीं है मुझे आख़िरी मुलाक़ात अभी है बाकी

लोग कहते है मिल गई मंज़िल मुझको
जानता है मेरा दिल तलाश अभी है बाकी
'अस्क' की तलाश अभी है बाकी।।

अजीत सतनाम कौर
2015


***************************
                               (40)


क्यूँ लोग हमेशा अपने पहले प्यार की बात करते है,
बात मैं बताना चाहूंगी अपने आख़िरी प्यार की,
जो अभी तक छुपा रहा, बात उस यार की,
पहला प्यार तो सिर्फ एक एट्रेक्शन था
उम्र के साथ मिट गया,जैसे बॉ
आख़िरी इश्क़
डी में हुआ रिऐक्शन था।
टीन ऐज में सड़कों पे फ़िल्मी हीरो ढूंढने लगी,
कुछ हकीकत हाथों से छूटने लगी।

सब हीरोइन मुझे अपने आप मे दीखने लगी।
शीशी के आगे नाच के, मैं अदाएं सीखने लगी।
कियोंकि मैं कपडों में मॉडर्न
चरित्र में सवित्री होना चाहती थी,
प्यार तो चाहती थी पर ना कुछ खोना चाहती थी।
इसीलिए ये आज़माइश चलती रही,
और मेरे प्यार की उम्र निकलती रही।
किसी का गुलाब याद है तो किसी की किताब याद है।
अगर कोई गर अच्छा लगा  प्यार में ना वो सच्चा लगा।
साथी के रूप में पतिदेव आ गया,
करके पोछा बर्तन मैं सबकी जान बन गई।
किसी की बहू, किसी की बीबी, किसी की माँ बन गई।
आज भी आँखों में बाकी एक आशा है,
दिल के किसी कोने में नन्हीं सी अभिलाषा है,
आंखों पे मोटा चश्मा, बालों में चांदी है, हाथ में लाठी है, और कमर की टूटी काठी है
तो क्या हुआ
अब और ना मैं देर करूँगी
जल्द ही आखिरी प्यार को तुमसे शेयर करूँगी।

नवंबर 2019

***************************
                            (39)

मस्त हवा के हवाले कर 
अपने आप को
उड़ना चाहती थी मैं पँख फैला के
देखना चाहती थी आसमां को
इन्द्र धनुष के रंग सज़ा के

पर शीतल हवा से पहले ही
आँधी आ गई
तीख़ी नज़र एक बाज़ की
उस चिड़िया को खा गई

चिड़िया की हरजोई का
ना उसने कोई उत्तर दिया
हैवानित की चोंच से
उसके पँखो को कुत्तर दिया
अब मैं सहम गई हूँ

मैं डर गई हूँ
जीते जी मैं मर गई हूँ

अब मैं घोंसले से
कभी बाहर नहीं आती
कियूँ कि अब शीतल हवा नहीं गाती

अब ना रौशनी है
ना मौसम की गर्मी सर्दी है
सिर्फ़ पसरा है अँधेरा
और अंधेर गरधी है

ना रहे सुर
ना सजते अब साज़ है

चिड़ियाँ छुप गई घोंसलों में
बाहर उड़ते अब बाज़ है
सिर्फ़ बाज़ ही बाज़ है।।

अजीत सतनाम कौर

**************************
                           (38)


बेशक़ होती है मेरी कोख़ से हर उत्पत्ति
पर तेरी आग़ोश में होती है मेरी संपूर्ति।।

दूर बैठी देख रही थी 
रेगिस्तान को
एहसास ऐसा था
जैसे जमीं छू रही है
आसमान को
या
आसमां आया था उतर जमीं पे
ये कैसा था मिलन,
ये कैसा था मंजर।।

ना था कोई जब सींचने वाला
बंजर होती जमीं को
रेगिस्तान में बदलते देखा मैंने
बाहों में भर के आसमां
तूने जमीं को उठा लिया
या झुक कर मुझे पे ही कहीं
ख़ुद को मुझमें समा लिया
मेरी हया का ख़्याल भी था तुझे
उठा कोहरे की चादर
सबसे मुझे छुपा लिया
दोनों के आग़ोश से
फ़िर कैसी आँधी चली
टकराती गर्म हवा
तेज़ सांसो सी 
वादियों में बही
सन सनहट सी फ़िज़ा में
फ़ैल गई हर सूं कहीं
बादलों की गर्जना से
मूसला धार जो बरसा हुई
फ़िर मौसम ने मिज़ाज़
कुछ ऐसा बदला
धरती के माथे पे 
ओस की बूंदों सा पसीना उभरा।।


अजीत सतनाम कौर
25 दिसम्बर 2015

*************************
                          (37)
                   

ख़्वाब का रंग भी उड़ गया धूप में
अश्क़ को जब कभी हम सुखाने चले।।

सुना है इस दुनिया से कोई कुछ नहीं ले जाता
मगर मैं ले जाऊँगी कुछ राज़ साथ अपने।।

ठीक वैसे ही लग रहे हो तुम
जैसे ख़्वाबों में देखता था
क़ातिलाना ये अदा
चाल भी हिरनी जैसी।।

देख ले एक नज़र वक़्त ठहर जाएगा
ख़ुश हो कर कीजिये विदा
कहीं ना ये आख़िरी मुलाक़ात हो
मेरी चाहत मेरी हसरत है यही
तुझसे हर रोज़ यूँ ही बात हो।।

जब से देखा तुझे कोई मंज़र
ज़्यादा जंचती नही मुझे
मुझे भी क्या प्यार हुआ जो मेरे ख़्वाबों में भी ना था।।

गर मुहब्बत हो तो जता देना
दूर जाना भी हो तो बता देना
बुझने लगी है जो आग
अब उसे ना कभी हवा देना
दांव पे लगा दिया ख़ुद को
बाकि क्या है जो तुझे देना।।

अजीत सतनाम कौर
जनवरी 2018

****************************
                              (36)

अश्कों में मेरे आज भी लहू रिसता है
दिया था दर्द मुहब्बत ऐ दिल को
अभी भी हरा है ज़ख्म मुझे दिखता है

थमा कर मेरा हाथ सभी ने बेगाना कर दिया
छोड़ा तूने भी मगर बेगाना नहीं लगता है

बेशक़ जीया मैंने उसे ज़िंदगी मान कर
हक़ीक़त नहीं बस अफ़साना सा ही लगता है

तेरी आग़ोश देती है कड़ी धूप भी ठंडक मुझको
मौसम सावन का तेरे बग़ैर सुहाना नहीं लगता है

कहाँ होश में आने देता है कम्बख्त इश्क़ मुझको
मैखानां भी मुझे अब मैखानां नहीं लगता है

अब तो दर्द भी आते है मेरे पास सकूँन लेने
ज़ख्म 'अस्क' को और दे ज़माना नहीं लगता है।।


अजीत सतनाम कौर
सितंबर 2015

**********************
                        (35)


औरत हूँ मैं तो ज़िन्दगी जंग ही होगी
आज़ाद है सभी आज़ाद देश में
मेरी आज़ादी दरवाजों बंद ही होगी

मंदिर मस्ज़िद में करो लाख सज़दा
बिन पूजे नारी, इबादत पाखण्ड ही होगी

दे दी उसे दहलीज़ ना लफ़्ज़ दिए उसको
क्या जीया,ज़िंदगी एक दण्ड ही होगी

पहना जिन्होंने धर्म और झूठ का चोला
आवाज़ उनकी बुलंद ही होगी

कब तक सहती तक चुप रहती
दबती रही ज़वाला तो प्रचण्ड ही होगी

महलों में रहने वाले अमीर है लगते
प्रेम दौलत में उनकी हालत नंग ही होगी

रोज़ रंग बदलते देखे  'अस्क' आज के आशिक़
इतने चड़े रंग तो तस्वीर बदरंग ही होगी।।

अजीत सतनाम कौर
फ़रवरी 2016

***************************
                      (34)

दुनियां से कब किसको मिला क्या है
दर्द ओ ग़म के सिवा दिया क्या है

एक दिल था वो भी तुझको दे दिया
मेरे हिस्से में अब बचा क्या है

ज़िंदगी जिसके नाम की थी
वो ही बोला मुझे दिया क्या है

कब किसे क्या बना दे तू मौला
कौन जाने तेरी रज़ा क्या है

वार दी तुझपे ज़िंदगी अपनी
पूछते हो तुम्ही वफ़ा क्या है

बेवफ़ा कह दिया मुझको तो फिर
तेरे कहने को अब बचा क्या है।।

अजीत सतनाम कौर
जनवरी 2018

************************
                       (33)

तह किये हुए कपड़ो जैसे
ये सजोंऐ हुए रिश्ते
आज फिर यूँ ही बैठ गई
छांटने
ढेर बहुत बड़ा था ,  
उम्र के इस दौर में, 
खाली समय भी
बहुत पड़ा था.....।

आज हर रिश्ता बहुत साफ था......।
किसे के पास हो कर भी दूर होने का अहसास था।
और किसी के दूर होने पर भी वो आस पास था।
..........
रिश्ते कुछ बहुत पुराने
और कुछ घिसे से ,
कुछ जैसे रिश्ते जर्जर से
वो रंग में भी अब बेरंग से,
माँ बाप के सम्बोधन से सजे जैसे
ये मिले थे रिश्ते मुझको जन्म से.....
कुछ ना पुराने, ना कुछ नए से
बीच की तह में पड़े से
अभी भी पूरी तरह नही हडेह से 
रिश्ते थे कुछ सहेजे से,
बहन भाई के सम्बोधन से सजे जैसे
ये मिले थे रिश्ते मुझको बचपन से.......

ऊपर की तह में सजे थे रिश्ते कुछ नए से 
खुशबू से लबालब भरे से
चमकदार और चटकीले रंगे से
ये रिश्ते ताज़े मोह के भरे से
प्यार से दिखते लदे से
मेरे बच्चों के संबोधन से सजे जैसे
ये मिले थे रिश्ते मुझको मेरे चयन से........

फिर भी, ना जाने क्यों?
इस ढेर से मैंने सबसे पुराने नीचे दबे हुए रिश्ते को ही खींचा
ये वे रिश्ते थे जिसने
मेरा जीवन था सींचा
हंकाकि इस रिश्ते में वक़्त की करीज़ के निशान भी 
दिख रहे थे
पर इसी के जर्जर से रंग मुझे खींच रहे थे
मैंने ढेर को पलट कर 
नीचे दबे रिश्ते को निकाल
अपने सीने से लगा लिया
आँखों से गर्म जैसे कोई जलजला निकला

सच ही है 
मेरी सफ़ेद लट ने.... 
पिता का दुनिया से विदाई,
माँ के बुढ़ापे की दर्द तन्हाई
पुराने पेड़ की जड़ से
मजबूत रिश्ते
कपड़ो के ढेर से ये बढ़ते रिश्ते 
कुछ नए और कुछ पुराने से रिश्ते 
उम्र के सफ़र में टूटते और बनतें रिश्ते
मेरी ज़िंदगी के सफ़र के ऐ सानी रिश्ते ।।

अजीत सतनाम कौर
नवंबर 2019

**************************
                         (32)

शिक़वा ये तेरा था मेरी आँखों से अश्क़ नहीं गिरा है
ढलका है तेरी पलकों से
हर आँसू वो मेरा है

चाहो शिद्दत से तो क़ायनात भी मिला देती है
ऐसा लिखा मैंने किताबों में पढ़ा है

किया था वादा तो लौट आऊँगा एक दिन
खो ना जाए तू भी
बस यही एक शुबा है

ज़िंदगी को तो जीत लूँगा यकीं है मुझकों
मौत की दस्तक़ से दिल थोड़ा डरा है

यकीं है तुझ पे मुहब्बतों की हदों तक
आख़िर वो मर्द है शक़ इसलिए ज़रा है

वादा किया था मैंने रात मिलने का
पकड़ के चाँद वो कई रातों से खड़ा है

हम दोनों जैसे दो किनारें हों दरिया के
इक किनारे से भला दूजा कब मिला है

वो और लोग थे जो इश्क़ पे परवान चढ़ गए
आज आशिक़ी में 'अस्क' कौन किस के लिए मरा है।।


अजीत सतनाम कौर
जुलाई 2015

*************************
                      (30)

पापा तेरे जाने के बाद

कानों में गूँजती है इक बेशब्द आवाज़ 
मुझे कोई बुला रहा है
नज़रें ढूंढ रही हैं तुझको
नहीं मिलेगा तेरा प्यार मुझको
वक़्त कड़वी हक़ीक़त बता रहा है
फिर भी......
वहम है तू मुझे बुला रहा है

छोड़ गई थी इस जमीं पर
लौट आई हूँ फिर वहीँ पर
पुकारता है दिल तू कहाँ है
क्या मेरा खो गया है
कौन हँस के मुझे जता रहा है
फिर भी.....
वहम है तू मुझे बुला रहा है

तेरी छावं बग़ैर तप रही है ज़िंदगी
जाने अब कैसे कट रही है ज़िंदगी
झुरमुट रिश्तों का घेर मुझे सता रहा है
फिर भी.....
वहम है तू मुझे बुला रहा है

लगता है तू कहीं है आस पास
नज़रों की नहीं होता एहसास
सच, सपने को झुठला रहा है
फिर भी.......
वहम है तू मुझे बुला रहा है।।

अजीत सतनाम कौर
अक्टूबर 2008

************************
                   (29)
                              
जिस रास्ते पर
खड़ी थी ज़िंदगी
मैं कतरा गई
उधर जाने से।।


कुछ रितु के पँछी
उड़े जिस हाल से
कुछ पँख झरे उनके
कुछ पत्ते गिरे डाल से
बस यादें बना के उनको
मैंने अब तक रखा है
सम्भाल के।।


जब ज़िन्दगी की तस्वीर में
हुए रंग कुछ कम से
शरू मैंने पूरा उन्हें करना
फ़िर किया क़लम से।।


धूम पर मचलता था जो
वो गीत थी ज़िंदगी
वक़्त ने ली करवट
धीमी सी ग़ज़ल बन गई
रंगों से खेलने को जो
थामा था ब्रश मैंने
वो मेरे हाथ की
अब क़लम बन गई।।


कभी रंगों को बिखेर कर
केनवास को
मैं कर देती थी रंगीन
अब क़लम और काली है शाही
फ़िर ख्वाबो में रंग
भरती हूँ हसींन।।


कुछ सौदा किया
ज़िन्दगी ने
मुझसे इस क़दर
हर शै से मुझे नवाज़ा
दिल खोल कर
बस
बदले में मुझसे
मेरी मुस्कुराहट ले कर।।

अजीत सतनाम कौर
नवम्बर 2014

*************************
                   (28)

किस शरारत से बोल रहे हो
अब क्या बताऊँ हाय तौबा
नब्ज़ छू कर जान लेते हो
तुझसे क्या छुपाऊँ हाय तौबा
हर बार सुना वही गीत मुझसे
फिर वही सुनाऊँ हाय तौबा
मूँदी आँखे तेरी क्या अदा है
जागे को जगाऊँ हाय तौबा
साये से समाये हो मुझमें
दूरी कैसे बनाऊँ हाय तौबा
तेरे हाल सा ही मेरा हाल है
हाले दिल क्या बताऊँ हाय तौबा।।

दुनियां से कब किसको मिला क्या है
दर्द ओ ग़म के सिवा दिया क्या है

एक दिल था वो भी तुझको दे दिया
मेरे हिस्से में अब बचा क्या है

ज़िंदगी जिसके नाम की थी
वो ही बोला मुझे दिया क्या है

कब किसे क्या बना दे तू मौला
कौन जाने तेरी रज़ा क्या है

वार दी तुझपे ज़िंदगी अपनी
पूछते हो तुम्ही वफ़ा क्या है

बेवफ़ा कह दिया मुझको तो फिर
तेरे कहने को अब बचा क्या है।।


अजीत सतनाम कौर
जनवरी 2018


****************************
                    (27)

आँखे थी बंद चल रही थीं साँसे
धड़कता रहा मुझमें वो दिल तुम हो
जलाये ख़त मेरी यादों को किया दफ़न
मासूम नहीं हो मेरे क़ातिल तुम हो
माना ज़ीवन गर है भव सागर
राम कहें या अल्लाह,सबके साहिल तुम हो
तोड़े पूजा के घर,इंसानियत को कायम रखा
ख़ुदा तो नहीं हो पर पूजने के क़ाबिल तुम हो
'अस्क' शीशे के टूटा घर, पत्थरों की बौछार से
तेरी गवाही से लगा उस भीड़ में शामिल तुम हो।।


अजीत सतनाम कौर
फ़रवरी 2016


**********************
                     (26)

                             
मैंने तो नज़र भर देखा था
खिड़की खोल के रौशनी को
उड़ चल, तूने कहा
तेरे जहान अभी और भी हैं
तेरे हौसले से चलने लगी
ना ठहर, तूने कहा
तेरे मक़ाम अभी और भी है
ऊँची है उड़ान तेरी
फैला पँख, तूने कहा
तेरे आसमां अभी और भी है।।


अजीत सतनाम कौर
फ़रवरी  2014

**********************
                        (25)

मेरे हाथों की लकीरों में
ये ऐब है मुहसिन
मैं जिस शक़्स को छू लू
वो मेरा नहीं रहता ।।

उस शक़्स से फ़क़त
इतना सा ताल्लुक़ है
वो परेशान हो तो
मुझे नींद नहीं आती।।

तेरा मिलना ही
मुक्कदर में नहीं था ज़ालिम
वरना क्या कुछ नहीं खोया
तुझे पाने के लिए।।

वक़्त ही वफ़ा ना कर सका
जो लम्हें उसे ज़िन्दगी के दिए
ताह उम्र अफ़सोस है
ज़ख्म मेरे थे तो उसकी सुई से कियूं दिए।।

खाक में मिल गया है
तब से मेरा वजूद
जब से उसने मुझे
लफ्ज़ो से गिरा दिया
बेशक़ रोज चाँद से तोलता है
सुनता नहीं अब चाहें कान के पास बोलता है।।

मैंने वादा लिया था उससे
अपने जनाज़े पे बुलाने का
बस उसे निभाने को रोज़
उसके जिंदा होने की दुआ करती हूँ
उठा के हाथ अपने साथ
बस यही वफ़ा करती हूँ।।

बड़ी गज़ब सी फ़ितरत
पाई है मर्दों ने
वो ताकना चाहता है
औरत को लिबास के नीचे से
पर बेग़म अपनी के पर्दानशीं होने का
फ़र्क करता है।।

मेरी चुन्नरी में सुराख़ थे
तोहमतों के
सिर ढकने को उसका
किनारा ढूँढती हूँ
ख़ुद तो हूँ चलने में नक़ाब
उस पर
अपाहिजों से सहारा ढूंढ़ती हूँ।।

*****************************
                         (24)

लगा हालात को गले, ज़िंदगी ऐसे है गुज़ारी
विदेश की चकाचौंध देखी उन्होंने
मगर मैंने क़ीमत बड़ी दी है भारी

नहीं लेने देते सहारा उसे अब उस दीवार का
जो ईमारत उसने
पसीना बहा के है उसारी

कभी छीनना, कभी हक़ माँगना पड़ता
फ़ैला के आँचल कियूँ बनतीं है भिखारी

देश कब लौटना चाहें,परदेस छोड़ के
रोना रोए देश का,बड़ी है दुशवारी

परदेस में भी गाते गीत देश के
अपने देश में जीते, कियूँ ली ये जिंदगी उधारी

चाल चलता रहा ज़िंदगी के चलते
मौत के साथ ना चलनी ये
होशियारी

पैदल चला उम्र सारी, गरीबी को कोसता
चार कंधो की तुझे भी मिलेगी सवारी।।

अजीत सतनाम कौर
फ़रवरी 2016

*************************
                     (23)

फूल मेरे जुड़े में सजाने वो आ गया
नए ख़्वाब मुझे अब दिखाने वो आ गया

दुःख जो उठाये थे ज़िंदगी भर मैंने
खुशियों की राह अब दिखाने वो आ गया

लाता है कौन आसमां से तारे तोड़ कर
राह में मेरी कहकशां बिछाने वो आ गया

सिसकती रही रोती रही हमेशा से मैं
अश्क़ मेरी आँखों से चुराने वो आ गया

अपनी ही चीखों से फटते थे कान मेरे
ख़ुशी के नगमें आज सुनाने वो आ गया

ना सुनाया ग़म का फ़साना मैंने
ये बोझ भी मेरे दिल से हटाने वो आ गया।।

अजीत सतनाम कौर
2015


**************************
                       (22)


लगा हालात को गले, ज़िंदगी ऐसे है गुज़ारी
विदेश की चकाचौंध देखी उन्होंने
मगर मैंने क़ीमत बड़ी दी है भारी

नहीं लेने देते सहारा उसे अब उस दीवार का
जो ईमारत उसने
पसीना बहा के है उसारी

कभी छीनना, कभी हक़ माँगना पड़ता
फ़ैला के आँचल कियूँ बनतीं है भिखारी

देश कब लौटना चाहें,परदेस छोड़ के
रोना रोए देश का,बड़ी है दुशवारी

परदेस में भी गाते गीत देश के
अपने देश में जीते, कियूँ ली ये जिंदगी उधारी

चाल चलता रहा ज़िंदगी के चलते
मौत के साथ ना चलनी ये
होशियारी

पैदल चला उम्र सारी, गरीबी को कोसता
चार कंधो की तुझे भी मिलेगी सवारी।।

अजीत सतनाम कौर
फ़रवरी 2016


************************
                      (21)


आह निकली मेरी
उसके दर्द के कारण
अपने जख्मों को तो
मैंने कभी गिना ही नही।।

यूँ ही नहीं भीग गई
आँखे मेरी
लगता है कहीं कोई
बेटी रोई है।।

अपनी मजबूरी कीखोलता नहीं अपने लब
मुझसे शब्दों का प्यार माँगता है
ताकता है मासूमियत से
मगर इश्क़ तो इज़हार माँगता है।।


हर रोज़ सीखा है मैंने ज़िंदगी से
जोड़ देती हूँ कुछ सीखे पन्ने
ज़िंदगी की किताब से।।


गुल चमन में ए हसीं तुम सा अगर आबाद हो
ख़ुद गुलिस्तां और ख़ुद ही बागबां हो जाऊंगा।।


उम्र का सावन तो बेशक़ ही उतरने है लगा
ज़ुल्फ़ में तेरी हुआ तो फिर जवां हो जाऊंगा।।


अजीत सतनाम कौर
जनवरी 2018

**************************
                         (20)

जिसे भी देखो वही नज़र आता है जख़्मी
नहीं किसी को आदत अब ज़ख्म छुपाने की

चाहें कर तंग या खूब सता ले
अब मुझे आदत हो गई है मुस्कुराने की

मैं बेटी हूँ, बहन हूँ और हूँ माँ भी
बन गई आदत अब दर्द खाने की

परदेस आ गई देश की मिटटी छोड़ कर
कैसी पड़ गईं रस्में रोज़ी कमाने की

क्या कहे 'अस्क' माँ के आँसू देख कर
कोई आस नहीं अब वापिस घर जाने की ।।


अजीत सतनाम कौर
सितम्बर 2015

**************************
                   (19)

क्या कहूँ दिल में मेरे ऐसे समा गया कोई
दिल की दुनिया को मेरे ऐसे बसा गया कोई

बेख़बर था दिल मेरा ना जाने कैसे
उसकी दुनिया में चुपके से आ गया कोई

ये तो सोचा भी ना था मैंने कभी
बेख़ुदी में जलवा दिखा गया कोई

सुना रही थी मैं ग़म के नग़मे
गीत ख़ुशी के सुना गया कोई

दिल की तख़्ती पे लिखे थे गीत जितने
आँसुओ से अपने मिटा गया कोई

दिल ने कहा 'अस्क' अब बाज़ आ ओ
रोती हुई को हँसा गया कोई।।


अजीत सतनाम कौर
2015

************************
                    (18)

लक्ष्मण रेखा बना कर
मैंने उसे रोक दिया
दहलीज़ के उस पार
वो हाथ हिला के
चला गया परतेरी ख़ामोशी बयां करने
हर रोज़ लफ्ज़ आते है
बेशक़ दूर तुझसे हूँ
पर तेरी चुप से वाकिफ़ हूँ।।

आते जाते ज़रा आवाज़ दिया कीजिए
बस्ती के बसे होने का एहसास रहता है

यूँ काट दी ज़िंदगी गुमनामियों में
सुकूँ दिल को वो पास रहता है

सावन बरसेगा अपने वक़्त पे
प्यासे दिलों को ये आस रहता है

ये धूप छावं कुदरत के करिश्में
यकीं हो तो करम ख़ुदा का ख़ास रहता है।।

अजीत सतनाम कौर
जनवरी 2017

**************************
                  (17)

जानती हूँ कि भूला दोगे तुम
और कितनी बड़ी अब सज़ा दोगे तुम
हाथ फिर भी तुम्हें दे रही हूँ सनम
जबकि मालूम है कि डूबा दोगे तुम
जिंदगी ही बदल दी मेरी लाश में
जीते जी अब क्या जला दोगे तुम
राज़ मेरे फ़क़त जो तेरे पास है
अब ज़माने में उनको हवा दोगे तुम
गंगा जल की तरह प्यार बेदाग़ है
मुझ पे इल्ज़ाम कैसे लगा दोगे तुम।।

अजीत सतनाम कौर
जनवरी 2017

*************************
                    (16)

आज भी है मुझे
उसका इंतज़ार।।

मैं लगा कर
प्यार के पँख
खुल कर उड़ना चाहती थी
उसके प्यार की धार ने
मेरे पँख कुत्तर दिए।।

सोच लेना सफ़र बारे
चलने से पहले
कौन मिलेगा ?
जो वफ़ा निभा जाए
वो राह अभी मिली नहीं
कि तू चले और वफ़ा पाए।।

चलते चलते जब
मैं थक जाती हूँ
ज़िंदगी की डगर
और धुँधला जाती है
मेरी नज़र
तो कबरस्थान में
बैठ कर
मैं देखती हूँ अगला सफ़र।।

मेरी शोखियों को
वो क्या समझेगा
वो ये भी नहीं जानता है
मैंने अन्दर की
गुड़िया का हाथ
अभी छोड़ा नहीं है
बिछड़ गए सभी बारी बारी
बचपन ने साथ
अभी तोड़ा नहीं है।।

अजीत सतनाम कौर
जुलाई 2014

***************************
                    (15)

जिस रास्ते पर
खड़ी थी ज़िंदगी
मैं कतरा गई
उधर जाने से।।


कुछ रितु के पँछी
उड़े जिस हाल से
कुछ पँख झरे उनके
कुछ पत्ते गिरे डाल से
बस यादें बना के उनको
मैंने अब तक रखा है
सम्भाल के।।


जब ज़िन्दगी की तस्वीर में
हुए रंग कुछ कम से
शरू मैंने पूरा उन्हें करना
फ़िर किया क़लम से।।


धूम पर मचलता था जो
वो गीत थी ज़िंदगी
वक़्त ने ली करवट
धीमी सी ग़ज़ल बन गई
रंगों से खेलने को जो
थामा था ब्रश मैंने
वो मेरे हाथ की
अब क़लम बन गई।।


कभी रंगों को बिखेर कर
केनवास को
मैं कर देती थी रंगीन
अब क़लम और काली है शाही
फ़िर ख्वाबो में रंग
भरती हूँ हसींन।।


कुछ सौदा किया
ज़िन्दगी ने
मुझसे इस क़दर
हर शै से मुझे नवाज़ा
दिल खोल कर
बस
बदले में मुझसे
मेरी मुस्कुराहट ले कर।।

अजीत सतनाम कौर
नवम्बर 2014

***********************
                      (14)

कुछ मेरी भी शर्त
ज़िन्दगी से लगी थी
कुछ उसे भी ज़िद
मुझी से थी
उसकी कोशिश थी
मुस्कुराहट छिनने की
मुझे भी अनख थी
उससे जीतने की
सफ़र पूरा हुआ दौड़ का
मैं बाज़ी मार लूंगी
हँस कर उसे
अलविदा कहूँगी।।
मुवक्किल ना जी
सका कोई
काश और किन्तु में
बटती रही ज़िंदगी
रेत की तरह
फिसलता रहा वक़्त
यूँ तो रफ़्तार से
कटती रही ज़िंदगी।।
जैसे जैसे कटता गया
सफ़र ज़िंदगी का
एक अहसास पनपता रहा
मुझमें हक़ीक़ती का
जो गुनाह किए थे
शायद किसी जन्म में
तभी मेरी रूह को
ये कारगाह मिला होगा
कौन लिख सकता है
लेख किसी के
ऐसा होना दरग़ाह से ही
मिला होगा।।
काटती रही तां
उम्र ज़िंदगी को
कैद की तरहा
और पूछती रही
हर किसी से कि
मेरा गुनाह क्या है।।
चलो यूँही सही कि तुम
मुझे गिरा के चले तो सही
हरा के चले तो सही
आख़िर
मुस्कुरा के चले तो सही।।

अजीत सतनाम कौर
अगस्त 2014

**************************
                     (13)

दर्दों ग़म का हिसाब लिखना है
जिंदगी तुझपे किताब लिखना है

उम्र भर जो ना हो सके पूरे
कुछ अधूरे से ख़्वाब लिखना है

बात जो कह ना पाए थे तुमसे
बात वो भी जवाब लिखना है

कोई मुझको पढे, पढे ना पढे
अब मुझे बेहिसाब लिखना है

हाय रे कैसी है ये मज़बूरी
'अस्क' खार को भी गुलाब लिखना है।।


अजीत सतनाम कौर
जनवरी 2018


**************************
                         (12)

तेरे आने से लाखों रौनकें हो गईं हैं माही
मेरे होने से तुझको क्या मिला मुझको बताना

उठा सैलाब सोये जज़्बातों का मुझमें
क्या तुझे भी ऐसा कुछ हुआ मुझको जताना

मेरी शोखियों अब अंगड़ाईयाँ ले रही हैं
दिन रात तेरी आग़ोश में हूँ
शुरू कर मुझे तू सताना

ग़ुमराह में कहीं खो रही थी
अब तेरे नाम से पहिचनेगा मुझको ज़माना

हर अल्फ़ाज़ मेरे सामने निचोड़ा है मैंने
सुगलता है तेरे सीने में, कियूँ मुझको कहा ना

नशा तेरा है रंग तेरा चढ़ा है
अब बेरंग लगता है मुझको मैखानां।।


अजीत सतनाम कौर
अक्टूबर 2018

*************************
                     (11)

कियूँ छोड़ा मुझे
हर किसी ने
जरूर मुझमें कुछ
खामियां होंगी
मैं ही नहीं बना था
किसी के लिए
नसीब में मेरे ही
तन्हाईयां होंगी।।

मैं ढूँढती रही ज़िंदगी को
ज़िंदगी में ही
बसता है वो तो हर साँस में
मैं खोजती रही
बन्दगी में ही
मौज़ूद है वो क़ायनात में
मैंने ढूंढा सिर्फ
ज़मी में ही।।

बस उसने कहा था
इंतज़ार रखना
बेशक़ थे ज़िंदगी में
अमावस के अँधेरे
डाल के अश्कों का तेल
मैंने नैनो के दिये
जलाए रखे।।

हर रात सेज पर
ज़िंदगी की थकान से चूर
मैं सकून ढूँढती रही
आ तू यहीं
आरामगाह है ये मेरी
और आख़िरी नींद है मेरी
मुझे आख़िरी नींद सोना है
वादा था उससे मिलने का
इसी पते पे मुझे
दिलबर से रूबरू होना है।।

जिस रास्ते पर
खड़ी थी ज़िंदगी
मैं कतरा गई उधर जाने से
मुरझा गई उसे जीने में
अब तो खिलूँगी
मौत के आने से।।

हर शै में है
कहाँ नहीं है तू
सोचती हूँ
यहीं है वहाँ नहीं है तू
है कौन सी जगाह
जहाँ नहीं है तू
सच है या वहम
जहाँ मैं हूँ वहाँ नहीं है तू।।

आजीत सतनाम कौर
सितंबर  2014

**************************
                      (10)

दर्दों ग़म का हिसाब लिखना है
जिंदगी तुझपे किताब लिखना है

उम्र भर जो ना हो सके पूरे
कुछ अधूरे से ख़्वाब लिखना है

बात जो कह ना पाए थे तुमसे
बात वो भी जवाब लिखना है

कोई मुझको पढे, पढे ना पढे
अब मुझे बेहिसाब लिखना है

हाय रे कैसी है ये मज़बूरी
'अस्क' खार को भी गुलाब लिखना है।।


अजीत सतनाम कौर
जनवरी 2018

**************************
                          (9)

क्या कहूँ दिल में ऐसे समा गया कोई
दिल की दुनियां को मेरे बसा गया कोई

बेख़र था दिल मेरा जाने कैसे
उसकी दुनिया में चुपके से आ गया कोई

ये सोचा भी था ना ख़ाब में
बेख़ुदी में जलवा दिखा गया कोई

सुना रही थी मैं तो गमों के नग़मे
गीत खुशियों के सुना गया कोई

जो कुछ भी लिखा था दिल की तख़्ती पे
आँसुओ से अपने मिटा गया कोई।।

अजीत सतनाम कौर
अक्टूबर 2015

**************************
                      (8)

माँ के नाम
तेरी यादों के तवसूर में रहा करती है
तेरी बेटी तेरे दम से जीया करती है

ख़ुद काँपती रही सर्द हवाओं में वो
अपनी आग़ोश में बच्चे को लिया करती है

अपने सारे दुःखो को समेट झोली में
होंठ अपने सब्र से सिया करती है

अपने परिवार की छाया बन
सारे सुख उन पे वार दिया करती है

नहीं करते बदकिस्मत उसकी सेवा
कुदरत उन्हें कैसे बर्बाद किया करती है

है बेशक़ हजारों मील दूर मुझसे मगर
उसकी ममता मेरे अंदर जीया करती है

जब परदेस से उससे बात करूं
रो रो के मेरा नाम लिया करती है।।

अजीत सतनाम कौर
जून 2015

**************************
                     (7)

आज इस मंजर पर
मेरे दिल ने क्या कहा,
चाहा सभी को पर
क्यूँ ख़ुद को ना चाहा,
माँ में थी मेरी दुनिया
उसके पल्लू के संग रहना
मिलती थी मुझे ठंडी छांव
हर सुख दिया मेरे बाप ने
मेरा शहर या उनका गांव
सुखी थी मैं उसके राज में
उसकी ताक़त महसूस
करती थी अपने आप में

माँ ने टोका
हर वो काम करने को
जिसमें मेरी चंचलता थी
हर घड़ी अहसास कराया मेरे यौवन का,
मेरी बचपन को रंग दिया
अपने रंग में।
कुछ दर्द सा था मेरे अंदर  में

कैसे घर बदला
कियूँ माँ का छूटा
रस्में निबाही सब ने
मुझसे कुछ ना पूछा
पति की चौखट थी
मैं थी अब इसके दर पे
नया सफ़र था
अपना घर था
मेरी हस्ती थी
अब औलाद के दम पे

जी तो ली मैंने
एक लम्बी ज़िंदगी थी
माँ के घर से
माँ बनने तक
मैं ख़ुद के लिए
कब जी थी।।

अजीत सतनाम कौर

**************************
                    (6)

ना मैं कुछ कह सकती हूँ 
ना ही वो मुझे बताता है
दूँ नाम क्या इसको 
जो मेरा उसका नाता है

गर है वो चाँद तो हूँ मैं चाँदनी 
उसका है दिल ये बताता है

डरता है ना गुज़र जाऊ
सोते कहीं
हर सुबह वो बंसरी बजाता है

हार गई थी मैं बेदर्द ज़माने से
बाज़ी हार के अपनी 
मुझे जीतता है

मिटाने को अँधेरे मेरे जीवन के
अपनी आँखों के दीये वो जलाता है

अश्कों से ख़ाली हो गईं मेरी आँखें
'अस्क' के हिस्से के आँसू बैठ वो बहाता है।।


अजीत सतनाम कौर
2015

****************************
                       (5)

मेरी ज़िंदगी में कितना अँधेरा है
तेरे दम से ही सवेरा है

मैं जो जिन्दा हूँ
फ़क़त तेरे लिए
मेरी हर सांस जो तेरा है
हो महल,झोपड़ी या कुटिया
तू जहाँ है वहीँ मेरा बसेरा है

ज़िंदगी की कडी धूप में साया तेरा
ये पेड़ किस क़दर घनेरा है
कियूँ ना जतलाऊँ
तुम पे हक़ अपना
तू मेरा है सिर्फ मेरा है।।

अजीत सतनाम कौर
2015

**************************
                   (4)

उम्का कैसा ये सैलाब आया
सोए जज्बातों का कैसा बहाव आया

यूँ तो ख़तरे के निशान को निगल गया उम्र का पानी
जिंदगी की दौड़ में,ना मुझे ये ख्याल आया।।



कुछ नगद तो, कुछ कर्ज़ में थी जिंदगी
अनचाहे से फ़र्ज़ में थी जिंदगी
हर पल जीओ यारों
यही बात तुम्हें बताना चाहता हूँ 
चलाओ जादू की छड़ी
मैं गुजरे दौर में
लौट जाना चाहता हूँ।।
उम्र 


खामोश रास्तों में भी हलचल मचाए रखना
जूड़े में महबूब के फूल सजाए रखना

गले से लिपटे रहेंगें रिश्ते सारे
दोस्तो से पर हाथ मिलाये रखना


*************************
                    (3)

गिर के सज़दे में तेरे ख़ुदा मांगा है
अंदाज़े सुख़न अपना जुदा मांगा है

करूँ मुहब्बत मैं तेरे नेक बन्दों से
फ़क़त एक यही शौंक सदा मांगा है

ना मोहताज़ 'अस्क' कभी दुनिया में हो
उठा हाथ तो दुआ यही मांगा है।।


अजीत सतनाम कौर
अगस्त 2015

*************************
                 (2)

जब भी लम्हें याद आये है
शबे तन्हाई में आँसू बहाए है
गुज़रे थे जो दिन साथ तेरे
तेरी यादों से सजाए है
गमें जुदाई ने स्याह किया दिल को
तेरी याद में दीये जलाए है
तेरे वादे तेरी बातें तेरी याद
सब सीने में छुपाए है
जब भी चाहा तेरा जिक्र करना
बहाने से 'अस्क' ने गीत गाए है।।
अजीत सतनाम कौर
नवम्बर 2015

*************************
                  ( 1)

अज़नबी कोई मिला है
यूँ राह में
सोचता हूँ अब काफ़िला छोड़ दूँ
चलते हुए कदमों में जो 
चुभे काँटा
उन पथरीली राहों का रुख़ मोड़ दूँ
बंदिश बने गर कोई तुझे पाने में
झूठे हर रस्मों रिवाज़ों को तोड़ दूँ
अपनी चाहत का कर दिया बयां मैंने
तू कहे हाँ, नाम अपना तेरे संग जोड़ दूँ।।

अजीत सतनाम कौर
दिसम्बर 2016

****************************








Popular Posts

Image