अज़नबी कोई मिला है
अज़नबी कोई मिला है
यूँ राह में
सोचता हूँ अब काफ़िला छोड़ दूँ
चलते हुए कदमों में जो
चुभे काँटा
उन पथरीली राहों का रुख़ मोड़ दूँ
बंदिश बने गर कोई तुझे पाने में
झूठे हर रस्मों रिवाज़ों को तोड़ दूँ
अपनी चाहत का कर दिया बयां मैंने
तू कहे हाँ, नाम अपना तेरे संग जोड़ दूँ।।
अजीत सतनाम कौर
दिसम्बर 2016
Comments
Post a Comment